जन्म =12 जनवरी 1863
कलकत्ता
(अब कोलकाता)
मृत्यु =4 जुलाई 1902 (उम्र 39)
बेलूर मठ, बंगाल रियासत , ब्रिटिश
राज
(अब बेलूर, पश्चिम बंगाल में)
गुरु/शिक्षक = श्री रामकृष्ण परमहंस
वास्तविक नाम =नरेन्द्र नाथ दत्त
नरेन्द्र की बुद्धी बचपन से ही तेज थी।बचपन में
नरेन्द्र बहुत नटखट थे। भय, फटकार या धमकी का
असर उन पर नहीं होता था। तो माता
भुवनेश्वरी देवी ने अदभुत उपाय सोचा, नरेन्द्र का
अशिष्ट आचरण जब बढ जाता तो, वो शिव शिव
कह कर उनके ऊपर जल डाल देतीं। बालक नरेन्द्र
एकदम शान्त हो जाते। इसमे संदेह नही की
बालक नरेन्द्र शिव का ही रूप थे।
माँ के मुहँ से रामायण महाभाऱत के किस्से
सुनना नरेन्द्र को बहुत अच्छा लगता था।
बालयावस्था में नरेन्द्र नाथ को गाङी पर
घूमना बहुत पसन्द था। जब कोई पूछता बङे हो
कर क्या बनोगे तो मासूमियत से कहते कोचवान
बनूँगा।
पाश्चात्य सभ्यता में विश्वास रखने वाले पिता
विश्वनाथ दत्त अपने पुत्र को अंग्रेजी शिक्षा
देकर पाश्चातय सभ्यता में रंगना चाहते थे।
किन्तु नियती ने तो कुछ खास प्रयोजन हेतु
बालक को अवतरित किया था।
ये कहना अतिश्योक्ती न होगा कि भारतीय
संस्कृती को विश्वस्तर पर पहचान दिलाने का
श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो हैं स्वामी
विवेकानंद। व्यायाम, कुश्ती,क्रिकेट आदी में
नरेन्द्र की विशेष रूची थी। कभी कभी मित्रों
के साथ हास –परिहास में भी भाग लेते। जनरल
असेम्बली कॉलेज के अध्यक्ष विलयम हेस्टी का
कहना था कि नरेन्द्रनाथ दर्शन शास्त्र के
अतिउत्तम छात्र हैं। जर्मनी और इग्लैण्ड के सारे
विश्वविद्यालयों में नरेन्द्रनाथ जैसा मेधावी
छात्र नहीं है।
नरेन्द्र के चरित्र में जो भी महान है, वो उनकी
सुशिक्षित एवं विचारशील माता की शिक्षा
का ही परिणाम है।बचपन से ही परमात्मा को
पाने की चाह थी।डेकार्ट का अंहवाद, डार्विन
का विकासवाद, स्पेंसर के अद्वेतवाद को सुनकर
नरेन्द्रनाथ सत्य को पाने का लिये व्याकुल हो
गये। अपने इसी उद्देश्य की पूर्ती हेतु ब्रह्मसमाज
में गये किन्तु वहाँ उनका चित्त शान्त न हुआ।
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रामकृष्ण परमहंस की तारीफ सुनकर नरेन्द्र उनसे
तर्क के उद्देश्य से उनके पास गये किन्तु उनके
विचारों से प्रभावित हो कर उन्हे गुरू मान
लिया। परमहसं की कृपा से उन्हे आत्म
साक्षात्कार हुआ। नरेन्द्र परमहंस के प्रिय
शिष्यों में से सर्वोपरि थे। 25 वर्ष की उम्र में
नरेन्द्र ने गेरुवावस्त्र धारण कर सन्यास ले लिया
और विश्व भ्रमण को निकल पङे। स्वामी जी का आदर्श- “उठो जागो और तब
तक न रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए”
अनेक युवाओं के लिये प्रेरणा स्रोत है। स्वामी
विवेकानंद जी का जन्मदिन राष्ट्रीय युवा
दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनकी शिक्षा
में सर्वोपरी शिक्षा है ”मानव सेवा ही ईश्वर
सेवा है।”